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सिर्फ़ क्रीज़ पर टिकना ही नहीं रन बनाना भी महत्वपूर्ण : आकाश चोपड़ा

Cheteshwar Pujara plays a ramp shot Getty Images

एक खिलाड़ी के रूप में आप सबसे अधिक तब निराश होते हैं, जब आपको टीम से बाहर किया जाता है। यह निराशा तब और अधिक होती है, जब आप एक खिलाड़ी के रूप में ख़ुद को स्थापित कर लेते हैं और आपसे उम्मीदें अधिक होती हैं।

जब कोई खिलाड़ी टीम से बाहर होता है तो क्या करता है? वह बेसिक्स की तरफ़ लौटता है और अपनी तकनीकी ख़ामियों को दूर करने का प्रयास करता है। इसके अलावा आप अपने मज़बूत पहलुओं की तरफ़ रुख़ करते हैं, जिसकी बदौलत आप इतने बड़े खिलाड़ी हुए हैं।

ऐसा मेरे साथ भी हुआ था, जब 2004 में मैं भारतीय टीम से बाहर हुआ था। इसके बाद मैं सिर्फ़ एक लक्ष्य के लिए घरेलू क्रिकेट में खेलने गया कि मुझे जल्द से जल्द राष्ट्रीय टीम में वापसी करना है। ऐसा बिना रन बनाए संभव नहीं था, लेकिन मैंने अपने सबसे मज़बूत पक्ष धैर्य और रक्षात्मकता (डिफ़ेंस) पर भरोसा नहीं खोया।

मैं इस बात पर अडिग था कि आप जितने देर तक क्रीज़ पर रहेंगे, उतने ही अधिक रन आपसे बनेंगे। अगले दो सीज़न तक मैंने क्रीज़ पर अनगिनत घंटे बिताए और हज़ारों गेंद खेले, लेकिन मैं इस दौरान महज़ कुछ अर्धशतक ही बना सका। शतक और बड़ी पारियां अभी दूर थीं।

लेकिन मैंने अपने बेसिक्स पर भरोसा बनाए रखा। एक बार भी यह मेरे दिमाग़ में नहीं आया कि मैं अपने खेल को बदल दूं क्योंकि मुझे विश्वास था कि मैं सही काम कर रहा हूं। मैं अपने सबसे कठिन समय में अपने दो सबसे अच्छे साथियों (धैर्य और रक्षात्मकता) पर भरोसा कर रहा था। कुछ साल बिताने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि बल्लेबाज़ी का मतलब सिर्फ़ और सिर्फ़ रन बनाना होता है।

रक्षात्मकता और धैर्य आपकी मदद करते हैं, लेकिन आपको तो रन बनाना ही पड़ेगा। मुझे अब रन बनाने के बारे में सोचना शुरू करना पड़ा। जब तक मैं रक्षात्मक माइंडसेट के साथ खेल रहा था, तब तक मेरा शरीर रन बनाने के लिए सही स्थिति में नहीं आ पा रहा था, जबकि मेरे पास कौशल थे।

इस तरह मेरी दो ताकतों ने मेरे खेल में ही बेड़ियां डाल दी थीं। हालांकि वे वास्तव में कमज़ोर कड़ी नहीं थे, लेकिन निश्चित रूप से उन्होंने मुझे अपने खेल के अन्य पहलुओं का पता लगाने से रोके रखा।

क्या चेतेश्वर पुजारा के साथ भी ऐसा हो रहा है?

पुजारा ने अगस्त 2019 के बाद से 36 पारियों में कोई शतक नहीं बनाया है। लेकिन जब पुजारा ने बड़े रन नहीं बनाए हैं, तब भी उन्होंने ज़बरदस्त दबाव में कुछ शानदार पारियां खेली हैं। इस साल सिडनी, ब्रिस्बेन और लॉर्ड्स में खेली गई उनकी पारियां आज भी हमारी यादों में ताज़ा हैं।

इन दो सालों के दौरान पुजारा ने हज़ारों गेंदें खेली हैं और क्रीज़ पर अनगिनत घंटे बिताए हैं। उन्हें कुछ जादुई गेंदें मिलीं, जिसके कारण वह टिकने के बाद भी लंबी पारी खेले बिना भी आउट हुए। मेरे ख़्याल से उनके पैर उतने नहीं चल रहे हैं, जितना चलना चाहिए। इसके कारण वह क्रीज़ पर फंस रहे हैं।

लेकिन लीड्स में उनकी पारी देखकर ऐसा लगता है कि पुजारा के सबसे विश्वसनीय दोस्त - सुरक्षात्मकता और धैर्य - ही उन्हें अपनी क्षमता का एहसास करने की अनुमति नहीं दे रहे थे। उनके पैर अच्छी तरह से चल रहे थे। यहां तक कि कई बार उनके हाथ तो रुक रहे थे, लेकिन फ़ीट मूवमेंट की बदौलत वह अच्छी तरह से ड्राइव, पंच और पुल मार रहे थे।

यह वही पुजारा हैं, जो पिछले एक-दो सालों को छोड़कर हमेशा से ही ऐसे खेलते आए हैं। उन्होंने इस पारी में ना सिर्फ़ अपनी विकेट की चिंता की बल्कि वह लगातार रन बनाते रहे। इस वजह से उनके सामने वाले बल्लेबाज़ पर भी रन बनाने का दबाव नहीं पड़ा।

रक्षात्मकता और धैर्य पुजारा के अभी भी दोस्त होंगे लेकिन वे अब उनके सबसे प्यारे दोस्त नहीं होने चाहिए।